गाडिय़ा लोहार की बेटी बनेगी पहली डॉक्टर, मोमबत्ती जलाकर की पढ़ाई…
परिस्थितियां विपरीत हो तो कुछ लोग टूट जाते हैं, और कुछ लोग रिकॉर्ड तोड़ देते हैं..ऐसा ही कुछ अनोखा कारनामा कर दिखाया है हरियाणा राज्य के तोशाम की बेटी लाली ने। दरअसल यह लड़की हरियाणा राज्य के तोशाम की रहने वाली है,जो एक काफी गरीब लोहार की बेटी है, जिसने बीएससी मेडिकल तक की पढ़ाई की है और अपने डॉक्टर बनने के सपने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है।
- माता-पिता ने किया पूरा सहयोग:
जब मैं छोटी थी तो मेरे माता-पिता ने मुझे स्कूल में भेजा और जब मैं बड़ी होती गई तो मुझे भी कुछ करने की लगन हुई। मेरे पिता पहले लोहा पीटा करते थे और अब फेरी लगाने का काम करते हैं, उन्होंने मुझे बहुत मेहनत से
पढ़ाया है और मेरे अंदर जुनून था इसलिए मैंने पूरी-पूरी रात जागकर मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ाई की है। उन्होंने बताया कि यहां पर कोई लाइट की और रहने की कोई अच्छी व्यवस्था नहीं है। लाली ने कहा कि हमारे
गाडे-लोहारों में बच्चों की छोटी उम्र में शादी कर दी जाती है, लेकिन मुझे आगे पढ़ाई करनी थी इसलिए मैंने शादी के लिए मना कर दिया और मेरे घर वालों ने भी मेरी बात मानी और मेरा पूरा साथ दिया।
- स्कूल के प्रिंसिपल ने करवाई फ्री में पढ़ाई:
आपको बता दें कि लाली ने तीसरी कक्षा तक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई की और उसके बाद उसके घर वालों से स्कूल की फीस नहीं दी गई इसलिए उन्होंने लाली का दाखिला सरकारी स्कूल में करवा दिया। उसके बाद दूसरे स्कूल के प्रिंसिपल ने कहा कि लाली पढा़ई में काफी होशियार है और टैलेंटेड भी है इस बेटी ने मेरे स्कूल का नाम रोशन किया है इसलिए मैं लाली को फ्री में पढ़ाऊंगा।
लाली ने कहा कि सरकार आती है और चली जाती है लेकिन हमारे लिए कोई भी सुविधा नहीं है। उसने बताया कि सरकार आती है और हमारी झुग्गीयों को उठवा देती है। अस कारण से हमारी जाती के बच्चे पढ़ाई नहीं कर पाते। उनके आसपास के इलाकों में लगभग हजार गाडिय़ा लोहार रहते हैं, महाराणा प्रताप की प्रतिज्ञा से बंधे ये लोग अब चाहते हैं कि इनके बच्चे भी व्यवस्था में शामिल हों और अपना भविष्य संवारें। बच्चों के भविष्य की खातिर अगर पुरानी
परंपराएं तोडऩी पड़ें, तो पुरखे नाराज नहीं होते, बल्कि आशीष बनकर बरसते हैं।
गाडिया-लोहार जाती के लोग बेघर और घुमंतू होते हैं। इन लोगों की बैलगाड़ी ही उनका घर होती है। बैलगाड़ी के कारण ही ये गाडिय़ा लोहार कहलाए जाते हैं। इनकी सजी-धजी गाडिय़ां इनकी पहचान हैं। इन्हीं गाड़ी के चक्कों में
इनके घर-परिवार के लगातार चलते रहने की कील लगी है। इसी कील में कहीं बरसों पुरानी प्रतिज्ञा आज भी बंधी है प्रतिज्ञा के मूल में एक लंबी कथा सांस लेती है। इसमें गहन दुख, आक्रोश, हिम्मत और भविष्य की सुखद आस एक साथ महसूस होती है। यह अपने वर्तमान का प्रतिरोध भी हो सकती है और एक सुंदर सपने की परिकल्पना भी। ऐसी ही एक
प्रतिज्ञा गाडिय़ा लोहारों ने भी ली थी। जो समय के साथ और इस्पाती होती गई। पर अब लगता है की यह प्रतिज्ञा तोडऩे का सही समय आ गया है। वे पढ़ रहे हैं, बढ़ रहे हैं और अपने डेरे के स्थायी होने का सपना भी देख रहे हैं।