हरियाणा कांग्रेस ने इस बार प्रदेश संगठन में बड़ा फेरबदल किया है। पिछले 20 साल से चले आ रहे दलित (प्रदेश अध्यक्ष) और जाट (सीएम या नेता प्रतिपक्ष) के समीकरण को बदलते हुए ओबीसी वर्ग से आने वाले किसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है।
48 साल बाद किसी अहीरवाल नेता को कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी है। इससे पहले राव निहाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर नियुक्त थे। हालांकि जब उन्हें प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया तो उस दौरान राव ओबीसी वर्ग में नहीं आते थे। वहीं, नेता प्रतिपक्ष के तौर पर पार्टी ने पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुना है। इससे एक यह भी संकेत मिलता है कि पार्टी के अंदर हुड्डा का दबदबा कायम है और वे अब भी कांग्रेस में (लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद) अहमियत रखते हैं।
20 साल से बन रहा था दलित प्रदेश अध्यक्ष
कांग्रेस में पिछले 20 साल से दलित वर्ग से ही प्रदेश अध्यक्ष बनते रहे हैं। 2001 से 2004 तक पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा अध्यक्ष थे। उसके बाद कांग्रेस ने फूलचंद मुलाना, अशोक तंवर, कुमारी सैलजा और उदयभान को प्रदेश अध्यक्ष चुना। मगर 2014 के बाद कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में सफलता नहीं मिली। वहीं, दूसरी तरफ भाजपा ने गैर जाट वोट ओबीसी में डोरे डालते हुए उन्हें अपना मुख्य वोट बैंक बना लिया। पिछले तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत में ओबीसी वोट बैंक सबसे बड़ा निर्णायक साबित होता रहा है। इसलिए पार्टी ने इस बार अपने समीकरण में बदलाव करते हुए ओबीसी वर्ग के नेता राव नरेंद्र को प्रदेश अध्यक्ष चुना।
कांग्रेस ने क्यों लगाया राव नरेंद्र सिंह पर दांव
राव नरेंद्र सिंह हरियाणा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के लिए सबसे मुख्य विकल्प के तौर पर थे। ओबीसी में यादव यानी राव सबसे बड़ा वोट बैंक है। कांग्रेस हाईकमान ने पहले से ही मन बना लिया था कि प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए ओबीसी पर ही दांव लगाना है। मगर किसे बनाना है। इसके लिए पार्टी ने काफी मंथन किया और क्षेत्रीय समीकरण को भी ध्यान में रखा। हाईकमान के पास तीन नाम भेजे गए थे, जिनमें राव नरेंद्र के अलावा चिरंजीव राव और राव दान सिंह का नाम था।
राव दान सिंह पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के काफी करीबी हैं साथ ही उनके परिवार पर ईडी के मामले चल रहे हैं। इसलिए कांग्रेस ने उनके नाम से परहेज किया। वहीं, चिरंजीव राव पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव के बेटे हैं। अजय यादव समय-समय पर कांग्रेस आलाकमान को असहज स्थिति में डालते रहे हैं। इसलिए कांग्रेस ने चिरंजीव राव के मुकाबले राव नरेंद्र पर विश्वास जताया।
वहीं, अहीरवाल बेल्ट हरियाणा कांग्रेस के लिए सबसे कमजोर कड़ी साबित होती रही है। 2024 विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस यादव बहुल इलाके में 11 में से 10 सीटें हार गई थी। वहीं, राव नरेंद्र सिंह पर किसी गुट का ठप्पा नहीं है। कांग्रेस पिछले कई समय से गुटबाजी से जूझ रही है। ऐसे में उन्हें ऐसे नेता की जरूरत है, जो किसी गुट में शामिल नहीं रहा है। राव नरेंद्र सिंह राहुल गांधी के सामाजिक समीकरण में भी फिट बैठते हैं।
हुड्डा का दबदबा क्यों कायम है
कांग्रेस के प्रदेश में पांच सांसद और 38 विधायक हैं। इनमें से चार सांसद और 32 विधायक पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पाले में हैं। इतना बड़े जनसमर्थन को हाईकमान अनदेखी नहीं कर सकता। हुड्डा के अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी नहीं था। दूसरा बड़ा कारण जाट वोट बैंक है।
हरियाणा में करीब 21 फीसदी वोट बैंक जाट बिरादरी का है। यह वोट बैंक एकतरफा हुड्डा के पीछे खड़ा है। दरअसल जाट वोट बैंक को आज भी भरोसा है कि भाजपा को यदि कोई हरा सकता है तो वे पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही हैं। वहीं, कांग्रेस के पुराने नेता में आज भूपेंद्र सिंह हुड्डा ही बचे हैं, बाकी पुराने कांग्रेसी पार्टी को छोड़ चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से पूर्व सीएम भजनलाल, पूर्व सीएम बंसीलाल, राव इंद्रजीत का परिवार शामिल रहा है। ये सभी भाजपा में हैं।
वहीं, चौधरी बीरेंद्र सिंह भी एक बार कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा चुके हैं। तीन बार सत्ता से बाहर रहने के बावजूद हुड्डा कांग्रेस में बने हुए हैं। यह पार्टी और उनके लिए भी काफी मायने रखती है। उधर, एक फैक्टर यह भी है कि कांग्रेस के भीतर संसाधन, धन और बल से पूर्व सीएम हुड्डा ही सबसे मजबूत नेता हैं। ऐसे में हुड्डा की अनदेखी करना पार्टी के लिए इतना आसान नहीं था।