“सिर चढक़र बोलता अंधविश्वास” – विज्ञान के युग में भी पाखंडियों का बोलबाला!

- ये ढोंगी महिलाओं की भावुकता का फायदा उठा तंत्र-मंत्र में फंसाकर बनाते हैं उन्हें उल्लू
- प्रशासन सबकुछ जानकर भी बना बैठा है अंजान, नहीं हो रही इनपर कार्रवाई
प्रिंस लांबा, हरियाणा न्यूज 24
विज्ञान की इस 21वीं सदी में तंत्रमंत्र, टोने-टोटके, लालच और अंधविश्वास के जाल में उलझने वाली महिलाओं की कतार ढोंगी और पाखंडियों की चौखट पर आजकल बढ़ती जा रही है। अंधविश्वास का फायदा उठाने वालों को भी लगता है महिलाएं की भावुकता का फायदा उठाकर उन्हें उल्लू बनाना आसान है। इसलिए ये पाखंड़ी सबसे अधिक महिलाओं को ही अपना शिकार बनाते हैं। इससे भी मजेदार पढ़ी-लिखी महिलाएं भी आसानी से इनके जाल में फंस जाती हैं। इसके विपरीत आश्चर्यजनक बात तो यह है कि सरकार व प्रशासन को सबकुछ पता होने के बावजूद इन ढोंगियों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।

भाग-दौड़ भरी जिदंगी में समस्याओं का आना आम बात है। हर कोई अपनी जिदंगी में खुशी की कल्पना करता है। यह बुरा भी नहीं है, लेकिन परेशानी तब सामने आती है जब अंधविश्वास सिर चढक़र बोलता है। महिलाएं समस्याओं का समाधान और खुशियों को पूरा करने का शॉर्टकट फॉर्मूला तांत्रिकों और पंडित-पूजारियों के पास खोजती हैं, परंतु कड़वी हकीकत यह है कि इससे जिदंगी सुलझने की बजाय और उलझ जाती है। ये पाखंडी झूठे कारनामे करने में माहिर हैं। इन तंत्रमंत्र की दुकानों के लिए किसी लाईसेंस की जरूरत नहीं होती। छोटे-बड़े शहर, कस्बों में ऐसे लोगों का बड़ा जाल होता है। ये पाखंडी महिलाओं को उनकी समस्याओं का गारंटी से ईलाज की ताल ठोकते हैं तथा उनके घर में भूत-प्रेत, साया होने की बात कहकर डरा देते हैं। अगर जादू-टोने जैसी आलौकिक शक्ति आप में होती तो जरा-सोचिए कि क्या आप पढऩे-लिखने जाएंगे? क्या आप अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए नौकरी या मेहनत-मजदूरी करते? बिलकुल नहीं, क्योंकि वास्तविकता यह है कि जादू-टोने जैसी कोई आलौकिक शक्ति होती ही नहीं है।

जब भस्मी व ताबीज बांटकर ही राजनीतिक रूप से आप बहुत-से लोगों को अपने कब्जे में रख सकते हैं, उन्हें सामाजिक रूप से वंचित व प्रताडि़त कर सकते हैं, लोगों के मन में ऐसे संस्कार भर सकते हैं कि वे नए विचार, नए आविष्कार और नए साहसिक कार्यों की तरफ भूल कर भी न देखें तथा बारिश न हो तो यज्ञ करें। आपका दिमाग वैज्ञानिक ढंग से बादल पैदा करने और उन्हें बरसाने में न लगे बल्कि सिर्फ पंडों-पुरोहितों के चरण धोने में लगा रहे। बीमार हों तो कारणों की खेजबीन और निदान करने के बजाय संतों व ओझा गुनियों का चक्कर लगाते रहें। सबसे अधिक मजे की बात यह है कि पंडे, ओझा, गुनिया अपनी पोल खुद जानते हैं। वे जानते हैं कि उनका तंत्र-मंत्र सिर्फ धोखा देने के लिए है। मैं अपने अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि राजनेता व व्यवसायी खासकर पुरूष पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र की पोल अच्छी तरह से जानते हैं। तांत्रिक व ऐसे लोगों को अपमानित करते कई सेठिए किस्म के लोग मिल जाएंगे।

ऐसे ढोंगियों पर सरकार व प्रशासन हमेशा अपनी पीठ थपथपाते रहते हैं कि इस विज्ञान के युग में हमने ढोंगियों, पाखंडियों का राज खत्म कर दिया है। लेकिन सच्चाई किसी से छुपी नहीं है। आज भी प्रशासन व सरकार की नाक के तले डंके की चोट पर जगह-जगह इन पांखडियों द्वारा खेला जा रहा है ठगी का खेल…..!
Very very nice news good lage raho Munna Bhai MBBS oh sorry pirns bhi