भारत की सबसे अनोखी गौशाला, किया ऐसा कारनामा जो नहीं हुआ कहीं और…

हरफूल जाट जुलानीवाला एक गौरक्षक जिसको आप भली-भांती जानते ही होंगे। हरफूल जाट ने अपने देश की गौमाताऔं के लिए अपने और अपने परिवार के प्राण न्योछावर कर दिए थे।
- जीवन परिचय:
वीर हरफूल जी का जन्म सन् 1892 में भिवानी जिले के लोहारू तहसील के गांव बारवास में एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। बारवास गांव के इन्द्रायण पाने में उनके पिता चौधरी चतरू राम सिंह रहते थे। उनके दादा का नाम चौधरी किताराम सिंह था। सन 1899 में हरफूल के पिताजी की मृत्यु हो गयी थी। इसी बीच उनका परिवार जींद जिले के गांव जुलानी में आ गया। यहीं के नाम से उन्हें वीर हरफूल जाट जुलानी वाला कहा जाता है।
- पहला हत्था तोडऩे का किस्सा:
टोहाना में मुस्लिम रांघड़ो का एक गाय काटने का एक कसाईखाना था। वहां की 52 गांवों की नैन खाप ने इसका कई बार विरोध किया। कई बार हमला भी किया जिसमें नैन खाप के कई नौजवान शहीद हुए व कुछ कसाई भी मारे गए। लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिमों के साथ थी और खाप के पास हथियार भी नहीं थे। तब नैन खाप ने वीर हरफूल को बुलाया व अपनी समस्या सुनाई। वीर हरफूल भी गौहत्या की बात सुनकर लाल पीले हो गए और फिर नैन खाप के लिए हथियारों का प्रबंध किया। हरफूल ने युक्ति बनाकर दिमाग से काम लिया। उन्होंने एक औरत का रूप धरकर कसाईखाने के मुस्लिम सैनिको और कसाइयों का ध्यान बांट दिया। फिर नौजवान अंदर घुस गए उसके बाद हरफूल ने ऐसी तबाही मचाई के बड़े बड़े कसाई उनके नामसे ही कांपने लगे। उन्होंने कसाइयों पर कोई रहम नहीं खाया। सैंकड़ों मुस्लिम रांघड़ो को मौत के घाट उतार दिया और गऊओं को मुक्त करवाया। अंग्रेजों के समय बूचडख़ाने तोडऩे की यह प्रथम घटना थी। इस महान साहसिक कार्य के लिए नैन खाप ने उन्हें सवा शेर की उपाधि दी व पगड़ी भेंट की।
- गौमाता को बचाने के लिए सैंकडों बार लड़ी लड़ाई:
हरफूल ने ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहां उन्हें पता चला कि कसाईखाना है वहीं जाकर धावा बोल देते थे।
उन्होंने जींद, नरवाना, गौहाना, रोहतक आदि में 17 गौहत्थे तोड़े। उनका नाम पूरे उत्तर भारत में फैल गया। कसाई उनके नाम से ही थर्राने लगे । उनके आने की खबर सुनकर ही कसाई सब छोड़कर भाग जाते थे। मुसलमान और अंग्रेजों काकसाइवाड़ेका धंधा चौपट हो गया। इसलिए अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी। मगर हरफूल कभी हाथ न आये। कोई अग्रेजों को उनका पता बताने को तैयार नहीं हुआ।
- हरफूल जाट की गिरफतारी:
अंग्रेज़ो ने हरफूल को पकडऩे के लिए उस पर इनाम रख दिया तब हरफूल अपनी बहन के सुसराल झुंझनू राजस्थान के पचेरी कलां(बुहाना) में रुके हुए थे तब एक राजपूत ने पुलिस को सूचना दे दी। अंग्रेजी पुलिस ने हरफूल को 1936 में फिरोज़पुर में फ़ासी दे दी ऐसे एक वीर अध्याय का अंत हुआ।
हरफूल जाट के चाहने वालों ने भी अपना प्यार दिखाते हुए एक काफी अच्छा और सराहनीय काम किया है। हरियाणा राज्य के चरखी दादरी जिले के छपार गांव के लोगों ने एक बड़ी और अच्छी गौशाला का निर्माण किया है। इस गौशाला में गौमाताऔं की बहुत अच्छी देखभाल की जाती है। गांव के लोगों ने गौशाला के बाहर हरफूल जी की एक प्रतिमा का भी निर्माण कियया है। यह कार्य करने के बाद उनके मन को काफी सुकुन मिल रहा है और सब लोग खुश हैं।